बलात्कार का केस दर्ज हुआ था
जस्टिस रंजीत मोरे और जभारती डांगरे की बेंच ने यह बड़ा फैसला दिया है। दरअसल कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमे आरोप था कि 14 वर्ष की लड़की से विवाह करने वाले आदमी पर बलात्कार का मामला चलाया जाए। शिकायत में कहा गया था कि आरोप लगाने वाली लड़की की मौजूदा उम्र 18 वर्ष है और उसका विवाह 52 वर्ष के वकील से 2014 में हुआ था। उसने अपनी शिकायत में कहा था कि उसके दादा दादी ने आदमी से उसका विवाह जबरदस्ती कराया था।
10 महीने के लिए पति गया था जेल
मामला सामने आने के बाद आरोपी वकील को हिरासत में ले लिया गया था और उसे 10 महीने के लिए जेल भेज दिया गया था, जिसके बाद उसे जमानत पर रिहा किया गया था। 18 सितंबर 2018 को जब लड़की 18 वर्ष की हुई तो वकील ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उसके खिलाफ केस को खत्म किए जाने की याचिका दायर की। यही नहीं पीड़िता ने एक याचिका दायर की जिसमे उसने कहा कि उसने मामले में समझौता कर लिया है और वह चाहती है कि अपने पति के साथ रहे, लिहाजा उसके पति पर लगा केस खत्म किया जाए।

युवती पति के साथ रहना चाहती है
पीड़िता की याचिका का अभियोजन पक्ष के वकील अरुणा कामत पई ने विरोध किया, उनका कहना था कि इस तरह के मामले गलत उदाहरण पेश करेंगे और लोगों के बीच गलत संदेश देंगे। जिसके बाद 2 मई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वह महिला के भविष्य को लेकर चिंतित है। बेंच ने कहा कि इसमे कोई संदेह नही है कि पीड़िता का जब विवाह हुआ तो वह नाबालिग थी। लेकिन अब युवती ने बालिग हो गई है और उसने पति के साथ समझौता करने का फैसला लिया है। चूंकि शिकायकर्ता आरोपी वकील के साथ मिलकर रहना चाहती है और उसका कानूनी तौर पर विवाह हुआ है, जोकि गैरकानूनी है लेकिन अब यह वैद्य हो गया है।

पति को दिया यह निर्देश
बेंच ने कहा कि हमारा मानना है कि अंत में महिला को सभी मुश्किलों का सामना करना है, चूंकि समाज में महिला को पत्नी के तौर कोई भी स्वीकार नहीं करेगा, लिहाजा हमे लगता है कि इस समय युवती का भविष्य सुरक्षित करना काफी अहम है। बेंच ने निर्देश दिया कि लड़की का पति अपनी पत्नी के नाम 10 एकड़ जमीन करे और उसके लिए 7 लाख रुपए फिक्स डिपोजिट करे, साथ ही उसकी पढ़ाई को भी पूरा कराए। पुलिस को भी कोर्ट ने निर्देश दिया है कि आरोपी पति के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं करे।